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आज की कहानी: धीरे चलो

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नदी के तट पर एक भिक्षु ने वहां बैठे एक वृद्ध से पूछा “यहां से नगर कितनी दूर है?
सुना है, सूरज ढलते ही नगर का द्वार बंद हो जाता है।
अब तो शाम होने ही वाली है। क्या मैं वहां पहुंच जाऊंगा?’
वृद्ध ने कहा “धीरे चलो तो पहुंच भी सकते हो।”
भिक्षु यह सुनकर हैरत में पड़ गया। वह सोचने लगा कि लोग कहते हैं कि जल्दी से जाओ, पर यह तो विपरीत बात कह रहा है।
भिक्षु तेजी से भागा। लेकिन रास्ता ऊबड़-खाबड़ और पथरीला था। थोड़ी देर बाद ही भिक्षु लड़खड़ाकर गिर पड़ा।
किसी तरह वह उठ तो गया लेकिन दर्द से परेशान था।
उसे चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। वह किसी तरह आगे बढ़ा लेकिन तब तक अंधेरा हो गया।
उस समय वह नगर से थोड़ी ही दूर पर था। उसने देखा कि दरवाजा बंद हो रहा है।
उसके ठीक पास से एक व्यक्ति गुजर रहा था। उसने भिक्षु को देखा तो हंसने लगा भिक्षु ने नाराज होकर कहा, “तुम हंस क्यों रहे हो?”
उस व्यक्ति ने कहा, ‘आज आपकी जो हालत हुई है, वह कभी मेरी भी हुई थी।
आप भी उस बाबा जी की बात नहीं समझ पाए जो नदी किनारे रहते हैं।’
भिक्षु की उत्सुकता बढ़ गई। उसने पूछा “साफ साफ बताओ भाई।
उस व्यक्ति ने कहा “जब बाबाजी कहते हैं कि धीरे चलो तो लोगों को अटपटा लगता है।
असल में वह बताना चाहते हैं कि रास्ता गड़बड़ है, अगर संभलकर चलोगे तो पहुंच सकते हो।
शिक्षा
जिंदगी में सिर्फ तेज भागना ही काफी नहीं है। सोच-समझकर संभलकर चलना ज्यादा काम आता है।

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