सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमदः।
आचारस्य प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मां व्यवच्छेत्सीः।।
तैत्तिरीयोपनिषद् १.११पिता पुत्र को उपदेश देता है कि
हे पुत्र! तुम सदा सत्य बोलो।
धर्म का आचरण करो।
स्वाध्याय में आलस्य मत करो और अपने श्रेष्ठ कर्मो से तुम्हें कभी मन नही चुराना चाहिए अर्थात् आलस्य के कारण बहाने नही बनाने चाहिए।
आचारस्य प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मां व्यवच्छेत्सीः।।
तैत्तिरीयोपनिषद् १.११पिता पुत्र को उपदेश देता है कि
हे पुत्र! तुम सदा सत्य बोलो।
धर्म का आचरण करो।
स्वाध्याय में आलस्य मत करो और अपने श्रेष्ठ कर्मो से तुम्हें कभी मन नही चुराना चाहिए अर्थात् आलस्य के कारण बहाने नही बनाने चाहिए।
The father instructs the son,
O Son! Speak the truth.
Practice Righteous Conduct Dharma.
Do not be lazy in acquiring knowledge through spiritual books and never divert your mind from noble deeds, that is, you should never make excuses.