राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 समाप्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-ए (राजद्रोह) को पुनः लागू करती प्रतीत होती है। न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने यह भी कहा कि यह प्रावधान मूल रूप से अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए राजद्रोह अपराध के समान है।
धारा 152 का उद्देश्य
इस धारा का उपयोग ऐसे कृत्यों या प्रयासों को अपराध घोषित करने के लिए किया जाता है, जो:
अलगाव,
सशस्त्र विद्रोह,
विध्वंसक गतिविधियों को उकसाते हैं,
या देश की स्थिरता को खतरे में डालने वाली अलगाववादी भावनाओं को प्रोत्साहित करते हैं।
असहमति और राष्ट्रीय सुरक्षा का संतुलन
न्यायमूर्ति मोंगा ने जोर दिया कि इस प्रावधान का इस्तेमाल वैध असहमति को कमजोर करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह बहस का विषय है कि धारा 124-ए (पुराना राजद्रोह कानून) और बीएनएस धारा 152 में से कौन अधिक कठोर है।
भाषण की स्वतंत्रता और सावधानीपूर्वक उपयोग
अदालत ने स्पष्ट किया कि:
धारा 152 का उपयोग भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अनुरूप होना चाहिए।
इसे असहमति के खिलाफ तलवार के रूप में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ढाल के रूप में देखा जाना चाहिए।
केस का संदर्भ
यह टिप्पणी एक सिख उपदेशक की याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई, जिन्होंने कनाडा के खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल सिंह के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया था। उनके खिलाफ बीएनएस धारा 152 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसे रद्द करने की मांग की गई थी।
न्यायालय की चेतावनी
न्यायालय ने कहा कि:
ऐसे प्रावधानों को लागू करने के लिए भाषण और विद्रोह या अलगाव की संभावना के बीच सीधा और आसन्न संबंध होना चाहिए।
राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
न्यायमूर्ति मोंगा ने स्पष्ट किया कि बीएनएस धारा 152 का उद्देश्य केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना है, न कि असहमति की आवाज़ों को दबाना। इस प्रावधान का सावधानीपूर्वक उपयोग लोकतंत्र और संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए।