नई दिल्ली,(नेशनल थॉट्स ) : देवोत्थानी एकादशी के साथ भगवान श्री हरि का अभूतपूर्व आगमन होता है, जिससे भूलोक में दिन-रात का चक्कर चलना शुरू होता है। इस दिन से ही विवाह धार्मिक कार्यों की शुरुआत होती है और देवगण जागते ही सभी मांगलिक कार्यों का आरंभ हो जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष 26 एकादशी तिथियां होंगी, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण ‘देवोत्थानी एकादशी’ 23 नवंबर को होगी। यह एकादशी व्रत 23 नवंबर को रात 9:02 बजे तक रहेगा, और इसके बाद 24 नवंबर को तुलसी विवाह और चातुर्मास व्रत का पारायण होगा। यदि इस दिन पारायण संभव न हो, तो पूर्णिमा तक किसी भी तिथि में व्रत पारायण कर सकते हैं।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि योग में अपनी निद्रा से जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। इस महत्वपूर्ण योग में सृष्टि का संचालन करना शुभ माना जाता है और इसके साथ ही पांच माह का चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है। इस दिन को अबूझ मुहूर्त मानकर विवाह भी किया जाता है।
कैसे प्राप्त होगी कृपा
- प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लेकर पूजा स्थल पर चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु तथा माता महालक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- भगवान विष्णु को को शंख में गाय का दूध डालकर स्नान कराएं।
- फिर गंगाजल से स्नान कराकर पीले वस्त्र पहनाएं।
- घी का दीपक जलाकर पंचामृत, तुलसी और फल अर्पित करते हुए ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप कर आरती करें।
- मध्याह्न में घर के आंगन में भगवान विष्णु के पदचिन्हों की कलाकृत और देवोत्थान एकादशी का चित्र गेरू और खड़िया के घोल से बनाकर चित्र के बीच फल मिठाई और परंपरानुसार खाद्य पदार्थ रखकर टोकरी से ढक दें।
- सायं पूजा के समय पूजा स्थल और घर के बाहर दीप जलाकर भगवान विष्णु के भजन गाते हुए उन्हें जागृत करें।
न करें ये काम
- व्रत के दिन चावल, अनावश्यक जल, केले, बाल नाखून, साबुन का प्रयोग न करें।
- एकादशी को व्रत रख कर प्रातः काल भद्रा रहित मुहूर्त में पंचदेव पूजन करें और पूरे दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- दूसरे दिन द्वादशी तिथि को गणेश, भगवान विष्णु शालिग्राम, लक्ष्मी पूजन कर श्रद्धा पूर्वक तुलसी विवाह कर सुख शांति की कामना करें।