You Must Grow
India Must Grow

NATIONAL THOUGHTS

A Web Portal Of Positive Journalism 

UCC: Let us know what is there in the Uniform Civil Code of Uttarakhand.

UCC: उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता में क्या कुछ है आइये जानते है

Share This Post

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ‘समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024’ का प्रस्ताव पेश किया है। इस विधेयक का उद्देश्य प्रदेश में सभी नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित करना है। इसमें विवाह, तलाक, विवाह-विच्छेदन, और लिव इन रिलेशनशिप के नियम-कानूनों का विस्तार समाहित किया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस संहिता के लागू होने से उत्तराखंड देश में सबसे मुफीद राज्य बनेगा। इसमें एक समान कानून होगा जो सभी धर्मों पर लागू होगा, जैसे कि विवाह, तलाक, और विवाहित जीवन से जुड़े मामलों में।

विधेयक के पहले भाग में विवाह और तलाक के प्रावधान हैं। इसके अलावा, विवाह और तलाक का पंजीकरण भी जरूरी होगा। इस संहिता के अनुसार, विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच ही हो सकेगा। इसके बाद तलाक के मामले में, पति या पत्नी की मौत के बाद दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है। इसमें लिव इन रिलेशनशिप के लिए भी पंजीकरण का प्रावधान है।

दूसरे भाग में, लिव इन रिलेशनशिप के नियमों पर विचार किया गया है। इसके अनुसार, लड़की की उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए और रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होगी।

आखिरी भाग में, उत्तराधिकार के नियमों पर ध्यान दिया गया है। इससे सम्बंधित कई प्रावधानों के माध्यम से लिंग और सम्पत्ति के अधिकारों में समानता लाई जा रही है।

समान नागरिक संहिता के लागू होने से उत्तराखंड में सम्पत्ति के अधिकारों को सुरक्षित किया जाएगा और सभी नागरिकों को समानता का अधिकार होगा।

विवाह के बारे में क्या है? 
विधेयक के भाग-1 में विवाह और विवाह विच्छेद का जिक्र है। वहीं भाग-2 में विवाह और विवाह विच्छेद पंजीकरण को जगह दी गई है। इसके लिए अहम प्रावधान हैं:

  • समान नागरिक संहिता सभी के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, जिसमें युवक की आयु 21 वर्ष और युवती की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
  • इस संहिता में पार्टीज टू मैरेज यानी किन-किन के मध्य विवाह हो सकता है, इसे स्पष्ट रूप से बताया गया है। विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच ही संपन्न हो सकता है।
  • इस संहिता में पति अथवा पत्नी के जीवित होने की स्थिति में दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • अब तलाक के बाद दोबारा उसी पुरुष से या अन्य पुरुष से विवाह करने के लिए महिला को किसी प्रकार की शतों में नहीं बांधा जा सकता। यदि ऐसा कोई विषय संज्ञान में आता है, तो इसके लिए तीन वर्ष की कैद अथवा एक लाख रुपए जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया है।
  • विवाह के उपरांत वैवाहिक दंपतियों में से कोई भी यदि बिना दूसरे की सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को तलाक लेने और गुजारा भत्ता क्लेम करने का पूरा अधिकार होगा।
  • विवाह का पंजीकरण अब अनिवार्य रूप से कराना होगा। इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम तथा जिला और राज्य स्तर पर इनका पंजीकरण कराना अब संभव होगा। प्रक्रिया को और ससत बनाने के लिए एक वेब पोर्टल भी होगा जिस पर जाकर पंजीकरण संबंधी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।
  • एक महिला और एक पुरुष के मध्य होने वाले विवाह के धार्मिक/सामाजिक विधि-विधानों को इस संहिता में छेड़ा नहीं गया है। अर्थात वे लोग जिस पद्धति से भी विवाह करते चले आ रहे हैं, जैसे कि सप्तपदी, आशीर्वाद, निकाह, होली यूनियन या आनंद कारुज अथवा इस प्रकार की अन्य परंपराएं, वे लोग उन्हीं प्रचलित परंपराओं के आधार पर विवाह संपन्न कर सकेंगे।
  • लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में क्या नियम होंगे?
    विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लिव-इन रिलेशनशिप का मुद्दा सहमति बनाम स्थापित सामाजिक नैतिक मानदंड से जुड़ा है। देश में हर नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा के लिए जरूरी कानून बनाए गए हैं और उसकी सुरक्षा की गई है लेकिन अधिकार बनाम सामाजिक व्यवस्था में संतुलन भी जरूरी है। इसीलिए उत्तराखंड की सरकार ने समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है।

    • इस एक्ट में यह प्रावधान किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले युगल के लिए लड़की की उम्र 18 वर्ष या अधिक होनी चाहिए और उसको लिव इन रिलेशनशिप में रहने से पहले पहचान करने के उद्देश्य से एक रजिस्ट्रेशन कराना होगा और 21 वर्ष से कम के लड़का और लड़की दोनों को इस रजिस्ट्रेशन की जानकारी दोनों के माता पिता को देनी अनिवार्य होगी।
    • उत्तराखंड सरकार ने लिव इन रिलेशनशिप के मामलों में रजिस्ट्रेशन को जरूरी कर दिया है ताकि ऐसे जोड़ों को कहीं रहने के लिए किराए पर मकान लेने या अन्य पहचान की आवश्यकताओं पर कोई कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े।
    • उत्तराधिकार के बारे में क्या है?
      विधानसभा में विधेयक को पेश करते हुए मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रभावी एवं प्रचलित व्यवस्थाओं में सम्पत्ति में उत्तराधिकार या इच्छापत्र (वसीयत) के अधिकारों में व्यापक विसंगति या भिन्नता रही है। उदाहरण के रूप में देखें तो अधिकांश प्रावधानों में मृतक की सम्पत्ति में माता, पति-पत्नी और बच्चों को तो अधिकार है, परन्तु पित्ता को अधिकार नहीं दिया गया है। इसी प्रकार एक ही व्यक्ति की सन्तानों में लिंग के आधार पर भी असमानता है। विवाहित और अविवाहित पुत्री को भी अलग-अलग अधिकार है।

      • समान नागरिक संहिता में माता-पिता को मृतक की सम्पत्ति में एक अंश निर्धारित किया गया है। इसकी व्यवस्था धारा 49 के स्पष्टीकरण व अनुसूची-2 के श्रेणी-1 में की गई है। सम्पत्ति के अधिकार में पुत्र-पुत्री में व्यापक असमानता को दूर किया जा रहा है।
      • हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम व शरीयत अधिनियम में उत्तराधिकार की भिन्नता एवं पुत्री के अधिकार की विसंगतियों को समान नागरिक संहिता वो भाग-2 के अध्याय-1 में दूर करते हुए एक व्यक्ति की समस्त सन्तानों को समान अधिकार प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गई है। सदियों बाद उत्तराधिकार से सम्पत्ति प्राप्त करने के अधिकार में बेटा-बेटी एक समान का सिद्धान्त को हम मूर्त रूप देने जा रहे हैं।
      • समान नागरिक संहिता ने बच्चों के सम्मान और सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित करने का काम किया है।
      • समान नागरिक संहिता में धारा-3 (1-क) में किसी भी रिश्ते से उत्पन्न होने पाले बच्चे को परिभाषित कर दिया गया है, वहीं दूसरी ओर धारा-49 में किसी भी प्रकार से उत्पन्न बच्चों को सम्पत्ति में समान रूप से अधिकार प्रदान कर दिया गया है।
      • यह कानून गर्भस्थ शिशु के अधिकारों को भी सुरक्षित करने का काम कर रहा है। इसके लिए इस संहिता के धारा-55 में अन्य सन्तानों की भांति गर्भस्थ शिशु को भी समान अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं।
      • समान नागरिक संहिता हत्यारे पुत्र को सम्पत्ति के अधिकार से वंचित करने जा रही है। संहिता की धारा-58 में यह व्यवस्था की गई है। अब कोई व्यक्ति उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए हत्या करने जैसे जघन्य एवं घिनौने अपराध से दूर रहेगा।
      • समान नागरिक संहिता की धारा-3 (1-3), 3 (3-अ) और अध्याय-2 यह प्रावधान करता है कि कोई व्यक्ति किसी भी माध्यम से प्राप्त समस्त सम्पदा की वसीयत स्वेच्छा से किसी भी व्यक्ति को कर सकता है, और अपने जीवनकाल में वसीयत को बदल भी सकता है, चाहे तो वापस भी ले सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *