उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान में कुंभकर्ण को ‘टेक्नोक्रेट’ करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि कुंभकर्ण छह महीने तक सोता नहीं था, बल्कि वह तकनीकी यंत्र बनाता था ताकि दूसरे देशों को अपनी तकनीकी जानकारी से वंचित किया जा सके। यह बयान उन्होंने लखनऊ के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में नवम दीक्षांत समारोह के दौरान दिया।
राज्यपाल ने अपने संबोधन में भारतीय संस्कृति और प्राचीन ज्ञान की समृद्ध विरासत पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने छात्रों को प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन करने की सलाह दी, ताकि वे हमारे पूर्वजों द्वारा किए गए अद्वितीय शोध और आविष्कारों को समझ सकें।
आनंदीबेन पटेल ने ऋषि भारद्वाज का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने विमान की परिकल्पना की थी, जिसे अब राइट बंधुओं का आविष्कार माना जाता है। यह उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे भारतीय वैज्ञानिक और ऋषि-मुनियों ने विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसका लाभ आज पूरी दुनिया उठा रही है।
राज्यपाल ने भारतीय संस्कृति की अद्वितीयता को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में न केवल ज्ञान, बल्कि वैज्ञानिक सोच और शोध भी मौजूद हैं। इस अवसर पर उन्होंने विश्वविद्यालयों से विद्यार्थियों को प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करने की अपील की, ताकि वे समझ सकें कि हमारे पूर्वजों ने किस तरह अद्वितीय अनुसंधान और आविष्कार किए थे।
आनंदीबेन पटेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की बढ़ती शिक्षा और शोध क्षमता की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि आज भारत शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छू रहा है, और प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों के कारण देश को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान मिल रही है।
राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों के उत्कृष्ट प्रदर्शन की भी सराहना की, जो अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में अच्छी स्थिति में हैं। उन्होंने विश्वविद्यालयों को सलाह दी कि वे राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) और राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) में और बेहतर स्थान प्राप्त करने के लिए मेहनत करें।
आनंदीबेन पटेल का यह बयान भारतीय प्राचीन ज्ञान की महत्ता को सामने लाता है और यह साबित करता है कि भारतीय संस्कृति में विज्ञान और तकनीकी नवाचारों के क्षेत्र में भी गहरी समझ थी। उनका यह संदेश विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक है, जो भारतीय विज्ञान और तकनीकी इतिहास को नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता को महसूस करें।