सुप्रीम कोर्ट ने ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004’ की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया गया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस पर अंतिम सुनवाई 5 नवंबर को होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मदरसा अधिनियम को धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन माना था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए कहा कि मदरसा बोर्ड का उद्देश्य सिर्फ विनियामक है और इसमें किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा का प्रावधान नहीं है।
इस फैसले का सीधा प्रभाव 17 लाख छात्रों पर पड़ सकता था, जिन्हें हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार दूसरे स्कूलों में स्थानांतरित करना पड़ता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छात्रों को दूसरे स्कूलों में भेजना उचित नहीं है।
उत्तर प्रदेश सरकार हर साल मदरसा शिक्षा के लिए 1,096 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ उठाती है। राज्य के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने बताया कि सरकार ने कानून का बचाव किया है, और इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मार्च में दिए अपने आदेश में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक घोषित किया था। अदालत ने राज्य सरकार से छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में स्थानांतरित करने के निर्देश दिए थे।