वरद चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसे “वरद गणेश चतुर्थी” के नाम से भी जाना जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता माना जाता है, जो सभी कठिनाइयों को दूर कर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यह व्रत विशेष रूप से नई शुरुआत, ज्ञान और धैर्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष वरद चतुर्थी का व्रत 5 नवंबर, मंगलवार को रखा जाएगा। चतुर्थी तिथि 4 नवंबर को रात 11:24 बजे से शुरू होकर 5 नवंबर को रात 12:16 बजे समाप्त होगी। पूजा का शुभ समय सुबह 10:59 से दोपहर 1:10 बजे तक रहेगा, इस दौरान गणपति बप्पा की पूजा का विशेष महत्व है।
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
घर में किसी पवित्र स्थान पर चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
गणेश जी को रोली, चंदन, अक्षत, सिंदूर, और दूर्वा चढ़ाएं।
मोदक या लड्डू का भोग लगाएं और “ऊँ गं गणपते नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
धन और सुख-समृद्धि के लिए गणेश जी के समक्ष चौमुखी दीपक जलाएं।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती चौपड़ खेल रहे थे। खेल में हार-जीत का निर्णय करने के लिए भगवान शिव ने एक बालक की प्राण प्रतिष्ठा की, जिसने शिव को विजयी घोषित किया। माता पार्वती इससे क्रोधित होकर बालक को अपाहिज होने का शाप दे देती हैं। बाद में, माता पार्वती द्वारा दिए गए सुझावों पर बालक ने भगवान गणेश की पूजा की, जिससे गणेश जी ने उसे शाप से मुक्ति दी और आशीर्वाद प्रदान किया।
व्रत के समापन के लिए चंद्रमा के दर्शन के बाद पारण करना शुभ माना जाता है। पारण करते समय मन को शुद्ध रखें और भगवान गणेश के प्रति आस्था रखें। पारण के बाद किसी मंदिर में दर्शन करें और जरूरतमंदों को दान दें।
गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करके उनका अभिषेक करें।
उन्हें मोदक, फल, दूध, और अन्य मिठाइयों का भोग लगाएं।
गणेश स्तोत्र का पाठ करें और सच्चे मन से पूजा करें।
दान और पुण्य के कार्यों में शामिल हों ताकि आपका जीवन सुख-समृद्धि से भर जाए।
वरद चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से न केवल सभी विघ्न दूर होते हैं, बल्कि ज्ञान, धैर्य और सफलता भी प्राप्त होती है।