समानी प्रपा सह वोऽन्नभागः समाने योक्त्रे सह वो युनज्मि।
समयञ्चोऽग्निं सपर्यतारा नाभिमिवाभितः।।
अथर्ववेद 3.30.6हे मनुष्यों ! तुम लोगों की पाकशाला सामूहिक हो अर्थात् आपस में ऊच-नीच और छुआ-छूत की मानसिक भावना मत रखो। तुम लोगों का विचार-व्यवहार एक समान हो। तुम सभी लोग वैचारिक रूप से संगठित होकर अग्नि की उपासना करो। जिस प्रकार चक्र की तीलियां धुरे के चारों तरफ स्थित रहती हैं, उसी प्रकार आपस में मतभेद होने पर भी मनभेद मत होने दो और संगठित रहो क्योंकि भेद-भाव से हिंसा एवम् विनाश होता है यद्यपि परस्पर एकता और संवाद से नवनिर्माण होता है।
समयञ्चोऽग्निं सपर्यतारा नाभिमिवाभितः।।
अथर्ववेद 3.30.6हे मनुष्यों ! तुम लोगों की पाकशाला सामूहिक हो अर्थात् आपस में ऊच-नीच और छुआ-छूत की मानसिक भावना मत रखो। तुम लोगों का विचार-व्यवहार एक समान हो। तुम सभी लोग वैचारिक रूप से संगठित होकर अग्नि की उपासना करो। जिस प्रकार चक्र की तीलियां धुरे के चारों तरफ स्थित रहती हैं, उसी प्रकार आपस में मतभेद होने पर भी मनभेद मत होने दो और संगठित रहो क्योंकि भेद-भाव से हिंसा एवम् विनाश होता है यद्यपि परस्पर एकता और संवाद से नवनिर्माण होता है।
O humans ! Your kitchen should be collective, that is, there should not be any feeling of inferiority or untouchability among you all. Your thoughts and behavior must be the same. All of you should unite ideologically. Just as the spokes of a wheel are placed around the axle, in the same way, even if there are differences of opinion never allow differences of hearts to come among you all. Always remain united because differences of opinion lead to violence and destruction whereas innovation occurs through mutual unity and dialogue.