ओ३म् अग्निमिळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥
ऋग्वेद-१.१.१
इस ब्रह्मांड में विद्यमान यज्ञ यानि श्रेष्ठ कर्मों के प्रकाशक और स्वामी, प्रत्येक परिस्थिति में पूजनीय, सभी अभीष्ट पदार्थों को प्रदान करने वाले, सुंदर रत्न आदि पदार्थों के धारण करने वाले, परमात्मा अथवा अग्नि अर्थात् जगत् का नेतृत्व करने वाले ईश्वर की मैं स्तुति करता हूं।
I praise God who is the master of the best deeds present in this universe, who is worshipable in every situation, who provides all the desired things, who creates beautiful gems, who is the Supreme Soul and the one who leads the world.