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वैदिक सुविचार

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लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्

पिवेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासादितः ।
कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमासादयेत्
न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥५॥
 
अर्थ – यत्न करने पर चाहे बालू से तेल निकाल लिया जाय, चाहे प्यासा मनुष्य मृगतृष्णा के जल से अपनी प्यास को बुझा ले और (चाहे ढूंढने पर खरगोश का सींग भी मिल जाय), परन्तु किसी वस्तु पर टिके हुए मूर्ख मनुष्य के मन को उस वस्तु से हटाना असंभव है |
 
Even if oil is extracted from the sand after making efforts, or a thirsty man quenches his thirst with the water of a mirage and (even if a rabbit’s horn is found after searching), but the mind of a foolish person fixated on some object should be diverted from that object. It is impossible.

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