You Must Grow
India Must Grow

NATIONAL THOUGHTS

A Web Portal Of Positive Journalism 

छठ पर खामोश हुई ‘बिहार कोकिला’ शारदा सिन्हा की आवाज, जानें उनकी जीवन कहानी

Share This Post

नई दिल्ली: लोकगायिका शारदा सिन्हा, जिन्हें “बिहार कोकिला” और “मिथिला की बेगम अख्तर” के नाम से जाना जाता था, का 5 नवंबर को 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह लंबे समय से कैंसर से जूझ रही थीं और एम्स में भर्ती थीं। शारदा सिन्हा के गायन के बिना बिहार और मिथिलांचल के किसी भी पर्व की कल्पना मुश्किल है। विशेषकर छठ के गीतों को घर-घर तक पहुंचाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। विडंबना यह है कि छठ पर्व के दौरान ही उनकी आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई।

शारदा सिन्हा हर वर्ष छठ के मौके पर एक नया गीत जारी करती थीं। इस बार भी उन्होंने खराब स्वास्थ्य के बावजूद “दुखवा मिटाईं छठी मईयां” गीत जारी किया था। यह गीत उनकी मन:स्थिति को भी दर्शाता है, जो बीमारी के बावजूद अपने चाहने वालों के लिए गाना जारी रखने की उनकी प्रतिबद्धता को दिखाता है।

शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली, और मगही में कई लोकगीत गाए, जिनमें “छठी मैया आई ना दुआरिया”, “कार्तिक मास इजोरिया”, “द्वार छेकाई” जैसे गीत शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी गीत गाए, जैसे “गैंग्स ऑफ वासेपुर-2” का “तार बिजली” और “हम आपके हैं कौन” का “बाबुल”।

1 नवंबर 1952 को बिहार के सुपौल में जन्मी शारदा सिन्हा ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पंडित रघु झा से प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने ख्याल गायक पंडित सीताराम हरि दांडेकर और पन्ना देवी से भी संगीत सीखा। उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।

शारदा सिन्हा सोशल मीडिया पर भी सक्रिय थीं। इंस्टाग्राम पर उनके 2.6 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं। वह भारत सरकार की सांस्कृतिक राजदूत के रूप में मॉरीशस, जर्मनी, बेल्जियम, और हॉलैंड जैसे देशों में भी प्रस्तुतियां दे चुकी हैं।

चार दशकों तक महिला महाविद्यालय, समस्तीपुर (एल.एन.एम.यू. दरभंगा) के संगीत विभाग में कार्यरत रहीं शारदा सिन्हा ने लोक संगीत को एक नई पहचान दी। उन्हें राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, बिहार रत्न, और मिथिला विभूति सम्मान जैसे अनेक पुरस्कार मिले। दिवाली के दिन 72 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली, और छठ पर्व के पहले दिन उनके सुरों की गूंज हमेशा के लिए शांत हो गई।

शारदा सिन्हा का निधन संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके गीत हर वर्ष छठ पर्व पर घाटों पर गूंजते रहेंगे और उनकी स्मृति सदा उनके चाहने वालों के दिलों में जीवित रहेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *