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प्रतीक्षा

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शबरी बोली, यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो हे राम! तुम यहाँ कहाँ से आते …?
राम गंभीर हुए और कहा कि “भ्रम में न पड़ो माते!
राम क्या केवल रावण का वध करने यहां आया है…?

अरे रावण का वध तो मेरा अनुज लक्ष्मण भी कर सकता था।

राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है माते, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे।
तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था।

जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं। यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है।

राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाए तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है।

राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखें कि प्रतीक्षा अवश्य पूरी होती हैं।
सबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

राम ने फिर कहा:- कि राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए, आदर्श की स्थापना के लिए, धर्म की स्थापना के लिए।

राम आया है ताकि धर्मियों को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है l

राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणो का घमंड तोड़ा जाय।

और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी बूढ़ी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं।
सबरी की आँखों में अश्रु भर आए,

उसने बात बदलकर कहा:- कन्द खाओगे पुत्र राम…।

राम मुस्कुराए बोले, “बिना खाये जाऊंगा भी नहीं माँ…”

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