क्या है सच : तानसेन की कब्र पर उगे बेरी के पत्ते खाने से होती है सुरीली आवाज !
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कब्र पर उगे फल खाने से होती है आवाज सुरीली
स्पेशल स्टोरी, नेशनल थॉट्स : भारतीय इतिहास में यह बात दर्ज है कि एक संगीतकार ऐसे भी रहे हैं, जिनके मरने के बाद उनकी क़ब्र पर बेरी का एक पौधा उग आया, जो बाद में विशाल पेड़ बन गया | आज भी संगीत सीखने वाले लोग उनके क़ब्र पर जाते हैं और उस पेड़ के पत्ते को खाते हैं | कहा जाता है कि पत्ते खाने से लोगों की आवाज सुरीली हो जाती है |
यह क़ब्र संगीतज्ञ उस्ताद तानसेन की है :
शास्त्रीय संगीत में ‘ग्वालियर घराना’ की एक अद्भुत शान और ठाठ है | शुरू में इस घराने ने ‘ध्रुपद गायकी’ में अपनी गहरी छाप छोड़ी और बाद में जब उसी रियासत से जुड़े लोग ‘ख़याल गायकी’ की ओर मुड़े तो उन्होंने ख़याल गायकी की भी एक अलग शैली का आधार रखा जो उस रियासत के नाम के अनुरूप ‘ग्वालियर घराना’ भी कहलाया |
अकबर के दरबार में थे उस्ताद तानसेन
मुग़ल सम्राट जलालुद्दीन अकबर के काल में ग्वालियर संगीत कला का बड़ा केंद्र समझा जाता था | वहाँ राजा मान सिंह तोमर (काल 1486- 1516) ने एक एकेडमी स्थापित की थी, जिसमें नायक बख्शू जैसे अद्वितीय विशेषज्ञ संगीत कला की शिक्षा देने के लिए नियुक्त थे | अकबर के दरबार से ग्वालियर के जो गवैये जुड़े थे, उनमें सबसे बड़ा नाम उस्ताद तानसेन का था |
कहाँ है उनकी कब्र
तानसेन आज भी हजरत मोहम्मद ग़ौस की खानकाह के अहाते में दफ़न हैं | मज़ार भी अपने गुरु के मज़ार की तरह सब की श्रद्धा का केन्द्र है और उपमहाद्वीप के नामी गिरामी गवैये वहां गाना अपने लिए गर्व की बात समझते हैं |
तानसेन पर बनी फिल्मों में बताया गया है सच
तानसेन की जिंदगी पर उपमहाद्वीप में कई फिल्में बन चुकी हैं | इस विषय पर बनने वाली पहली फ़िल्म 1943 में आयी थी जिसमें केएल सहगल ने तानसेन की भूमिका निभाई थी | इस फ़िल्म के निर्देशक जयंत देसाई थे | सन 1990 में पाकिस्तान टेलीविज़न ने इस विषय पर एक टीवी सीरियल बनाया जिसके प्रोड्यूसर ख़्वाजा नजमुल हसन और लेखिका हसीना मोईन थीं |