चीन के कर्ज जाल की कहानी तो आपने कई बार सुनी होगी, जब उसने भारत के पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार को भारी मात्रा में कर्ज देकर उनकी जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की। लेकिन अब एक ऐसा देश सामने आया है, जिसे चीन ने इतना बड़ा कर्ज दिया कि वह अपने अन्य अंतरराष्ट्रीय कर्जों को चुकाने में असमर्थ हो गया है। इस स्थिति के चलते देश डिफॉल्ट की कगार पर पहुंच गया है। इस बीच, भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर इस देश की यात्रा पर जाने वाले हैं।
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर आसियान और क्वाड बैठकों में भाग लेने के लिए एशियाई देशों लाओस और जापान का दौरा करेंगे। लाओस के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री सेलमक्सय कोमासिथ के निमंत्रण पर वे 25-27 जुलाई 2024 को वियनतियाने, लाओस का दौरा करेंगे। इस यात्रा के दौरान, जयशंकर आसियान-भारत, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) और आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) की विदेश मंत्री बैठकों में शामिल होंगे। यह यात्रा भारत की एक्ट ईस्ट नीति के एक दशक की उपलब्धियों का प्रतीक होगी, जिसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में 9वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में घोषित किया था।
लाओस, एक आंतरिक भूमि से घिरा देश है, जिसकी सीमाएं म्यांमार, चीन, वियतनाम और कंबोडिया से लगती हैं। यह देश दक्षिण पूर्व एशिया का एकमात्र ऐसा देश है जो चारों ओर से ज़मीन से घिरा हुआ है। लाओस का अधिकांश भाग पहाड़ों और जंगली क्षेत्रों से ढका हुआ है। 1964 से 1973 के बीच लाओस पर लगभग 260 मिलियन बम गिराए गए, जिनमें से कई अभी भी पूरे लाओस में बिखरे हुए हैं। लाओस और भारत के बीच राजनयिक संबंध 2 फरवरी 1956 को स्थापित हुए थे और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध गहरे हैं।
लाओस, पूर्वी एशिया के सबसे गरीब देशों में से एक है और यहाँ अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और अकुशल कार्यबल की समस्याएँ हैं। इसके बावजूद, यह विदेशी निवेश को आकर्षित करता है क्योंकि यह आसियान आर्थिक समुदाय के साथ एकीकृत होता है। इसके युवा कार्यबल और कर-अनुकूल वातावरण इसे विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बनाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में लाओस का दौरा किया था, जिसमें वे लाओस की यात्रा करने वाले चौथे भारतीय प्रधानमंत्री बने। इससे पहले जवाहर लाल नेहरू (1954), अटल बिहारी वाजपेयी (2002), और मनमोहन सिंह (2004) ने भी लाओस का दौरा किया था। भारत ने 4 अगस्त 2020 को लाओस को दवाओं और चिकित्सा आपूर्ति की एक खेप उपहार में दी थी, जो COVID-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में मददगार साबित हुई थी।
यह देखना दिलचस्प होगा कि जयशंकर की लाओस यात्रा से भारत और लाओस के बीच संबंध कैसे मजबूत होते हैं और इस यात्रा का लाओस के संकट पर क्या प्रभाव पड़ता है।