क्योंकि किसी एक यंत्र है एक असाधारण छात्र!!
मानव शरीर में जैसे नाभि का स्थान है, वैसे ही पृथ्वी पर वाराणसी का स्थान है.. शिवजी ने साक्षात इसे धारण कर रखा है!
शरीर के प्रत्येक अंग का सम्बन्ध नाभि से जुड़ा है और पृथ्वी के समस्त स्थान का सम्बन्ध भी वाराणसी से जुड़ा है।
धरती पर यह एकमात्र ऐसा यंत्र है!!
काशी की रचना सौरमंडल की तरह की गई है।
इस यंत्र का निर्माण एक ऐसे विशाल और भव्य मानव शरीर को बनाने के लिए किया गया।
जिसमें नैतिकता को अपने साथ लेकर चलने की विवशता न हो और जो सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपने आप में समा ले।
आपके अपने भीतर ११४ चक्रों में से ११२ आपके भौतिक शरीर में हैं। लेकिन जब कुछ करने की बात आती है तो केवल १०८ चक्रों का ही प्रयोग आप कर सकते हैं।
इसमें एक विशेष प्रकार से मंथन हो रहा है। यह घड़ा अर्थात मानव शरीर इसी मंथन से निकल कर आया है।
अतएव मानव शरीर सौरमंडल से जुड़ा हुआ है और ऐसा ही मंथन इस मानव शरीर में भी चल रहा है।
सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं। लेकिन जब कुछ करने की बात आती है तो केवल 108 कारों का ही प्रयोग आप कर सकते हैं।
अगर आप इन 108 चक्रों को विकसित कर लेंगे तो शेष चार चक्र स्वतः ही विकसित हो जाएंगे। हम उन छात्रों पर काम नहीं करते।
शरीर के 108 चक्रों को सक्रिय बनाने के लिए 108 तरह की योग प्रणालियां हैं।
पूरे काशी अर्थात बनारस शहर की रचना इसी तरह की गई थी।
यह पांच तत्वों से बना है और बहुधा ऐसा माना जाता है कि शिवजी के योगी और भूतेश्वर होने से उनका विशेष अंक पाँच है।
अतएव इस स्थान की परिधि पाँच कोश है। इसी तरह से उन्होंने संकेंद्रित कई सतहें बनाईं।
यह आपको काशी की मूलभूत ज्यामिति संरचना प्रदर्शित करता है।
गंगा के किनारे यह प्रारम्भ होता है और ये सकेंद्रीय वृत परिक्रमा की व्याख्या दिखा रहे हैं।
सबसे बाहरी परिक्रमा की माप 168 मील है।
यह शहर इसी तरह बना है और विश्वनाथ मंदिर इसी का एक छोटा सा स्वरूप है।
मूल मंदिर की संरचना ऐसी ही है। यह बेहद जटिल है। इसका मूल रूप तो अब रहा ही नहीं है।
वाराणसी को मानव शरीर की तरह बनाया गया था। यहाँ 72 हजार शक्ति स्थलों अर्थात मंदिरों का निर्माण किया गया।
एक मानव के शरीर में नाड़ियों की संख्या भी इतनी ही होती है।
अतएव उन लोगों ने मंदिर बनाये और आस-पास बहुत सारे कोने बनाये जिससे कि वे सब जुड़कर 72,000 हो जाएं।
यहां 468 मंदिर बने क्योंकि चंद्र कैलेंडर के अनुसार साल में 13 महीने होते हैं।
13 महीने और 9 ग्रह, 4 दिशाएं – इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए। तो यह नाड़ियों की संख्या के बराबर है।
यह पूरी प्रक्रिया एक विशाल मानव शरीर के निर्माण की तरह थी।
इस विशाल मानव शरीर का निर्माण ब्रह्मांड से सम्पर्क करने के लिए किया गया था।
इस शहर के निर्माण की पूरी प्रक्रिया ऐसी है मानो एक विशाल मानव शरीर एक वृहत ब्रह्मांडीय शरीर के सम्पर्क में आ रहा हो।
काशी संरचना की दृष्टि से सूक्ष्म और व्यापक जगत के मिलन का एक उत्कृष्ट प्रदर्शन है।
कुल मिलाकर, एक शहर के रूप में एक मंत्र की रचना की गई है।
प्रकाश का एक दुर्ग बनाने के लिए और ब्रह्मांड की संरचना से संपर्क के लिए यहाँ एक सूक्ष्म ब्रह्मांड की रचना की गई।
ब्रह्मांड और इस काशी रूपी सूक्ष्म ब्रह्मांड इन दोनों को आपस में जोड़ने के लिए 468 मंदिरों की स्थापना की गई।
मूल मंदिरों में 54 शिव के हैं, और 54 शक्ति या देवी के हैं। अगर मानव शरीर को भी हम देंखें तो उसमें आधा हिस्सा पिंगला है और आधा हिस्सा इड़ा।
दायां भाग पुरुष का है और बायां भाग नारी का है।
यही कारण है कि शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में भी दर्शाया जाता है। आधा भाग नारी का और आधा पुरुष का।
आपके स्थूल शरीर का 72% हिस्सा पानी है, 12% पृथ्वी है, 6%वायु है और 4%अग्नि। बाकी का 6% आकाश है।
सभी यौगिक प्रक्रियाओं का जन्म एक विशेष विज्ञान से हुआ है जिसे भूत शुद्धि कहते हैं।
इसका अर्थ है अपने भीतर मौजूद तत्वों को शुद्ध करना।
अगर आप अपने मूल तत्वों पर कुछ अधिकार प्राप्त कर लें, तो अचानक से आपके साथ अद्भुत चीजें घटित होने लगेंगी।
यहां एक के बाद एक 468 मंदिरों में सप्तऋषि पूजा हुआ करती थी और इससे इतनी अपार ऊर्जा पैदा होती थी कि हर कोई इस स्थान पर आने की इच्छा रखता था।
यह स्थान केवल आध्यात्मिकता का ही नहीं अपितु संगीत, कला और शिल्प के अलावा व्यापार और शिक्षा का केंद्र भी बना।
इस देश के महानतम ज्ञानी काशी के हैं।
शहर ने देश को कई प्रखर बुद्धि और ज्ञान के धनी लोग दिए हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, “पश्चिमी और आधुनिक विज्ञान भारतीय गणित के आधार के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता था।”
यह गणित बनारस से ही आया। इस गणित का आधार यहाँ है।
जिस प्रकार से इस शहर रूपी यंत्र का निर्माण किया गया, वह बहुत सटीक था।
ज्यामितीय संरचना और गणित की दृष्टि से यह अपने आप में इतना संपूर्ण है, कि हर व्यक्ति इस शहर में आना चाहता था।
क्योंकि यह शहर अपने अन्दर अद्भुत ऊर्जा पैदा करता था।
इसलिए आज भी यह कहा जाता है कि “काशी भूमि पर नहीं है। वह शिवजी के त्रिशूल के ऊपर है।”