ऐसे बने गणेश जी अग्रपूजा देवता
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार स्नान करने से पहले माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को आदेश दिया कि जब तक वह स्नान करके बाहर न आ जाएं तब तक किसी को भी अंदर न आने दें। बालक गणेश ने अपनी माता की आज्ञा का पालन किया और बाहर पहरा देने लगे। जब भगवान शिव वहां आए तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया और कहा कि मेरी माता अंदर स्नान कर रही हैं आप अंदर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेश को बहुत समझाया कि पार्वती मेरी पत्नी हैं।
लेकिन गणेश नहीं माने तब शिवजी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश की गर्दन काट दी और अंदर चले गए जब पार्वती ने शिवजी को अंदर देखा तो बोली आप अंदर कैसे आ गए। मैं तो गणेश को बाहर बैठा कर गई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसे मार दिया है। तब पार्वती जी ने उग्र रूप धारण कर लिया और कहा कि मैं यहां से तभी जाऊंगी जब आप मेरे पुत्र को जीवित कर देंगे अन्यथा नहीं। शिवजी ने पार्वती जी को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन पार्वती जी नहीं मानी विष्णु जी ने तुरंत गरुड़जी को आदेश दिया कि ऐसे बालक को खोजो और उसकी गर्दन तुरंत लेकर आओ।
बहुत खोजने के बाद गरुड़ जी को एक हथिनी मिली जो अपने बालक की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरुड़जी तुरंत उस बालक का सिर लेकर शिवजी के पास आये। शिवजी ने वह सिर गणेशजी के सिर पर रखकर उन्हें जीवनदान दिया और साथ ही उन्हें वरदान दिया कि आज से कहीं भी की जाने वाली पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाएगी। इसलिए हम जो भी कार्य करें, सबसे पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।
भगवान गणेश से जुड़ी दूसरी पौराणिक कहानी
गणेश जी को सबसे पहले पूजे जाने के पीछे एक और कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार एक बार शिव जी के दोनों पुत्र बालक गणेश और कार्तिकेय इस बात पर बहस करने लगे कि अपने माता-पिता से सबसे अधिक प्रेम कौन करता है। जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो उन्होंने दोनों के बीच हो रही बहस को शांत करने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित करने का विचार किया। इसमें सभी देवी-देवता उपस्थित हुए। इसके बाद भगवान शिव ने कहा कि जो भी उनके वाहन पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा, वही विजेता होगा।
पिता की बात सुनते ही कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। भगवान गणेश भी अपने वाहन मूषक के साथ तैयार हो गए, तभी उनके मन में विचार आया कि क्यों न अपने माता-पिता का चक्कर लगाया जाए। इस संसार में माता-पिता से बड़ा कोई नहीं है। तब भगवान गणेश ने अपने माता-पिता की सात परिक्रमा की। जब कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस लौटे तो सभी देवी-देवताओं ने भगवान गणेश को विजेता घोषित कर दिया। तभी से किसी भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठान में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाने लगी।