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भगवान शिव को भूतनाथ क्यों कहा जाता है?

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भूतनाथ भूत पति, या भूतेश्वर भगवान शिव

‘भूत’ शब्द का अर्थ है पंचभूत अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इसका दूसरा अर्थ है प्राणि समूह अर्थात् समस्त सजीव सृष्टि। ‘भूतनाथ’ का अर्थ है कि भगवान शिव पंचभूत से लेकर चींटी पर्यन्त समस्त जीवों, चाहें वह लूले-लंगड़े हों अथवा सर्वसमर्थ–सभी के स्वामी हैं। जो भी प्राणी उनकी भक्ति करते हैं, वह उन्हें अपना लेते हैं।

तमस से तमस असुर, दैत्य, यक्ष, भूत, प्रेत, पिशाच, बेताल, डाकिनी, शाकिनी, सर्प, सिंह–सभी जिसे पूजा, वही शिव ‘परमेश्वर’ और ‘भूतेश्वर’ हैं। भगवान शिव का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रूद्र, रुद्राणियां, चौंसठ योगिनियां, मात्राएं तथा भैरव आदि इनके सहचर तथा सहचरी हैं।

गरीब-से-गरीब के लिए गुंजाइश है वहां–क्योंकि नंगे, लूले, लंगड़े, सर्वहारा, अंडे-बड़े-टेढ़े सभी उनके गण बनकर उनकी बारात में शामिल हुए। जिनका कोई ठिकाना नहीं, उन सबके लिए भोले बाबा का दरबार खुला है। शिवजी की बारात में उनकी बहन चंडी देवी सांपों के आभूषणों से सजी प्रेत पर सवार हो, शत्रुओं को भयभीत करती हुई चल रही थीं। उनके गण कितने निराले हैं–भूत, प्रेत, बेताल, डाकिनी-शाकिनी, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, क्षेत्रपाल, भैरव आदि–जिन्होंने उनके विवाह में बाराती बनकर तहलका ही मचा दिया–

कोउ मुख हीन विपुल मुख काहू।

बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।।

विपुल नयन कोउ नयन बिहीना।

रिष्ट पुष्ट कोउ अति तनु खीना।।

भगवान शंकर तो प्रेम और शांति के अथाह समुद्र और सच्चे योगी ठहरे। उनके मंगलमय शासन में सभी प्राणी अपना वैर-भाव भुलाकर पूर्ण शांतिमय जीवन व्यतीत करते हैं। वे इतने हिंसक हैं कि सर्प, बिच्छू भी उनके आभूषण बने हुए हैं। उनके चारों ओर आनन्द के ही परमाणु फैले रहते हैं इसलिए ‘शिव’ (कल्याण रूप) एवं ‘शंकर’ (आनन्ददाता) कहलाते हैं।

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