सनातन हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि बिना ध्वज (ध्वज, पताका, झंडा) के मंदिर में असुर निवास करते है इसलिए मंदिर में सदैव ध्वजा लगी होनी चाहिए । सनातन धर्म की चार पीठों में से एक द्वारका पीठ भारत का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर 52 गज की ध्वजा दिन में तीन बार चढ़ाई जाती है ।
यह रक्षा ध्वज है जो मंदिर और नगर की रक्षा करता है । ऐसा माना जाता है कि ध्वजा नवग्रह को धारण किये होती है, जो रक्षा कवच का काम करती है । मंदिर के शिखर पर लगभग 84 फुट लंबी विभिन्न प्रकार के रंग वाली, लहराती धर्म ध्वजा को देखकर दूर से ही श्रीकृष्ण-भक्त उसके सामने अपना शीश झुका लेते हैं ।
कब से शुरू हुई मंदिर में ध्वजा लगाने की परम्परा ?
प्राचीनकाल में देवताओं और असुरों में भीषण युद्ध हुआ । उस युद्ध में देवताओं ने अपने-अपने रथों पर जिन-जिन चिह्नों को लगाया, वे उनके ध्वज कहलाए । तभी से ध्वजा लगाने की परंपरा शुरू हुई । जिस देवता का जो वाहन है, वही उनकी ध्वजा पर भी अंकित होता है ।
किस देवता की ध्वजा पर है कौन-सा चिह्न ?
प्रत्येक देवता के ध्वज पर उनको सूचित करने वाला चिन्ह (वाहन) होता है । जैसे—
विष्णु— विष्णु जी की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज पीले रंग का होता है । उस पर गरुड़ का चिन्ह अंकित होता है ।
शिव— शिवजी की ध्वजा का दण्ड चांदी का व ध्वज सफेद रंग का होता है । उस पर वृषभ का चिह्न अंकित होता है ।
ब्रह्माजी— ब्रह्माजी की ध्वजा का दण्ड तांबे का व ध्वज पद्म वर्ण का होता है । उस पर कमल (पद्म) का चिन्ह अंकित होता है ।
गणपति— गणपति की ध्वजा का दण्ड तांबे या हाथीदांत का व ध्वज सफेद रंग का होता है । उस पर मूषक का चिन्ह अंकित होता है ।
सूर्यनारायण— सूर्यनारायण की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज पचरंगी होता है । उस पर व्योम का चिह्न अंकित होता है ।
गौरी— गौरी की ध्वजा का दण्ड तांबे का व ध्वज बीरबहूटी के समान अत्यन्त रक्त वर्ण का होता है । उस पर गोधा का चिह्न होता है ।
भगवती/देवी/दुर्गा— देवी की ध्वजा का दण्ड सर्व धातु का व ध्वज लाल रंग का होता है । उस पर सिंह का चिह्न अंकित होता है ।
चामुण्डा— चामुण्डा की ध्वजा का दण्ड लोहे का व ध्वज नीले रंग का होता है । उस पर मुण्डमाला का चिन्ह अंकित होता है ।
कार्तिकेय— कार्तिकेय की ध्वजा का दण्ड त्रिलोह का व ध्वज चित्रवर्ण का होता है । उस पर मयूर का चिह्न अंकित होता है ।
बलदेवजी— बलदेव जी की ध्वजा का दण्ड चांदी का व ध्वज सफेद रंग का होता है । उस पर हल का चिन्ह अंकित होता है ।
कामदेव— कामदेव की ध्वजा का दण्ड त्रिलोह का (सोना, चांदी, तांबा मिश्रित) व ध्वज लाल रंग का होता है । उस पर मकर का चिन्ह अंकित होता है ।
यम— यमराज की ध्वजा का दण्ड लोहे का व ध्वज कृष्ण वर्ण का होता है । उस पर महिष (भैंसे) का चिन्ह अंकित होता है ।
इन्द्र— इन्द्र की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज अनेक रंग का होता है । उस पर हस्ती (हाथी) का चिन्ह अंकित होता है ।
अग्नि— अग्नि की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज अनेक रंग का होता है । उस पर मेष का चिन्ह अंकित होता है ।
वायु— वायु की ध्वजा का दण्ड लोहे का व ध्वज कृष्ण वर्ण का होता है । उस पर हरिन का चिन्ह अंकित होता है ।
कुबेर— कुबेर की ध्वजा का दण्ड नदियों का व ध्वज लाल रंग का होता है । उस पर मनुष्य के पैर का चिन्ह अंकित होता है ।
वरुण की ध्वजा पर कच्छप चिह्न होता है।
ऋषियों की ध्वजा पर कुश का चिह्न अंकित होता है।
प्राय: लोग किसी मनोकामना पूर्ति के लिए हनुमानजी या देवी के मंदिर में ध्वजा लगाने की मन्नत रखते हैं । हनुमानजी व देवी की पूजा बिना ध्वजा-पताका के पूरी नहीं होती है । देवी का तो पौष मास की शुक्ल नवमी को ध्वजा नवमी व्रत होता है जिसमें उनको ध्वजा अर्पण की जाती है।
प्रश्न यह है कि मंदिर में ध्वजारोहण से कैसे हमारी मनोकामना पूरी हो जाती है ? इसका उत्तर हमें नारद-विष्णु पुराण में मिलता है जिसमें कहा गया है कि—
भगवान विष्णु के मंदिर में ध्वजा चढ़ाने का महत्व यह है कि जितने क्षणों तक ध्वजा की पताका वायु के वेग से लहराती है, ध्वजा चढ़ाने वाले मनुष्य की उतनी ही पाप राशियां नष्ट हो जाती हैं । जब पाप नष्ट हो जाते हैं तो पुण्य का पलड़ा भारी हो जाता है और मनुष्य की मनचाही वस्तु उसे प्राप्त हो जाती है ।
मंदिर में ध्वजा चढ़ाने से मनुष्य की संपत्ति की सदा वृद्धि होती रहती है ।
ध्वजारोहण से मनुष्य इस लोक में सभी प्रकार के सुख भोग कर परम गति को प्राप्त होता है ।
जिस प्रकार मन्दिर की ध्वजा दूर से ही दिखाई पड़ जाती है, उसी प्रकार ध्वज अर्पण करने से मनुष्य हर क्षेत्र में विजयी होता है और उसकी यश-पताका चारों ओर फहराती है ।
ध्वजारोहण के लिए पहले सुन्दर ध्वज का निर्माण करायें । फिर शुभ मुहुर्त में जिस देवता को ध्वजा चढ़ानी है, उन भगवान का पूजन करें । इसके बाद ध्वजा का पंचोपचार (रोली, चावल, पुष्प, धूप-दीप और नैवेद्य से) पूजन करें । फिर ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करा कर मंगल वाद्य आदि बजाकर उसका मंदिर में आरोही करें । हो सके तो उस देवता के मंत्र से 108 आहुति का हवन करें । ब्राह्मण को वस्त्र दक्षिणा देकर भोजन कराएं ।