दिल्ली में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी ने आम आदमी पार्टी (AAP) को विभिन्न मुद्दों पर घेरते हुए जनहित के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है, जो दर्शाता है कि भाजपा चुनावी तैयारियों में कोई ढील नहीं देना चाहती। 1993 के विधानसभा चुनावों में दिल्ली में जीत हासिल करने के बाद, भाजपा ने दिल्ली की सत्ता में वापसी नहीं की है। 1993 में मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर चुनाव लड़ा गया था। इसके बाद, सुषमा स्वराज, विजय कुमार मल्होत्रा, डॉ. हर्षवर्धन और किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन पार्टी को सफलता नहीं मिली।
दिल्ली में भाजपा की सत्ता जाने के बाद, 15 साल तक कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार रही, फिर कुछ समय राष्ट्रपति शासन लगा और फिर से आम आदमी पार्टी की अरविंद केजरीवाल सरकार ने सत्ता संभाली। भाजपा को इस बार विश्वास है कि वह आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर कर देगी। पिछले दो चुनावों के नतीजों ने भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ाया है। दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा की हार की उम्मीद थी, लेकिन पार्षदों की संख्या में मामूली अंतर रहा। हालिया लोकसभा चुनावों में भाजपा ने सभी सात सीटों पर जीत दर्ज की थी।
भाजपा को इस बात की कमी खटक रही है कि उसके पास अरविंद केजरीवाल के कद का कोई नेता नहीं है, जिसके नेतृत्व में दिल्ली की जनता एकजुट हो सके। इसीलिए, पार्टी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और अमेठी से राहुल गांधी को हराने वाली स्मृति ईरानी के नाम पर विचार किया है। दिल्ली में भाजपा का बड़ा आधार महिला वोट बैंक है और स्मृति ईरानी की महिलाओं में अच्छी पैठ है।
स्मृति ईरानी की दिल्ली में बढ़ती भागीदारी से संकेत मिलते हैं कि पार्टी उनका नाम मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आगे कर सकती है। उन्होंने दिल्ली में सदस्यता अभियान की देखरेख का जिम्मा संभाला है और दक्षिण दिल्ली में एक नया घर खरीदा है, जो उनकी बढ़ती सक्रियता का संकेत हो सकता है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के साथ चुनाव लड़ने का विचार जोर पकड़ता है, तो ईरानी के साथ-साथ अन्य नेताओं जैसे सांसद मनोज तिवारी, बांसुरी स्वराज, भाजपा दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा, और पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा इस भूमिका के लिए संभावित दावेदार हो सकते हैं।
पार्टी के अंदर बहस जारी है कि चुनावों के लिए केवल एक चेहरे को आगे रखना सही रहेगा या नहीं। आगामी दिनों में, आबकारी नीति मामले में तिहाड़ जेल में बंद केजरीवाल को जमानत मिलने के बाद, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम पर चर्चा तेज हो सकती है।