एक सज्जन व्यक्ति सुबह सवेरे उठा , साफ़ कपड़े पहने और अपनी नित्य की दिनचर्या के अनुसार पूरे भक्ति भाव के साथ मंदिर की तरफ चल दिया ताकि प्रभु के दर्शन का आनंद प्राप्त कर सके ! वह प्रभु के विचारों में इतना तल्लीन था की चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा और कपड़े कीचड़ से सन गए !
उसे ये पता ही नहीं चला की ठोकर कैसे लगी ! अपने किसी पिछले जन्म के पाप का हिसाब किताब चुकता मानकर वापस घर आया और कपड़े बदलकर वापस मंदिर की तरफ रवाना हुआ । परन्तु ठीक उसी जगह फिर से ठोकर खा कर गिर पड़ा परन्तु कोइ चोट नहीं आई इसलिए प्रभु का धन्यवाद करता हुआ वापस घर आया और कपड़े बदले !
भक्ति भाव इतना अधिक था की बिना विश्राम किये और सूर्यदेव के ढलने के बाद फिर मंदिर की तरफ रवाना हो गया ! उस जमाने में कच्ची पगडंडिया होती थी और रोशनी का कोई प्रबंध नहीं होता था ! अँधेरा बढ़ता जा रहा था ! जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो वह क्या देखता है की एक देव पुरुष चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उस सज्जन व्यक्ति को अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है.
इस तरह वो पुरुष उसे मंदिर के दरवाज़े तक ले आया. पहले वाले व्यक्ति ने उससे कहा आप भी अंदर आकर दर्शन कर लें. लेकिन वो देव पुरुष मुस्कुराता हुआ चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और मंदिर में दाखिल नहीं हुआ. दो तीन बार कहने पर भी जब वह अंदर नहीं आया तो उसने पूछा आप अंदर क्यों नहीं आ रहे है …?
उस देव पुरुष ने जवाब दिया “क्योंकि मैं ” काल ” हूँ, । ये सुनकर पहले वाले व्यक्ति की हैरत का ठिकाना न रहा। काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको जमीन पर गिराया था. जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा मंदिर की तरफ रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे ” पाप ” क्षमा कर दिए थे ! जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दोबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के पाप क्षमा कर दिए.।
मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर चले गए तो कहीं ऐसा न हो आपके प्रबल भक्ति भाव के कारण एवं प्रभु के संकेत को मेरे द्वारा ना समझ पाने के कारण में अपराधी घोषित हो जाऊं और आपके पुण्य स्वरूप आपके सारे गांव के लोगों के पाप क्षमा कर दे. इसलिए मैं यहाँ तक आपको स्वयं पहुंचाने आया हूँ.।