बीएमसी चुनाव: उद्धव बनाम शिंदे, BJP की रणनीति और चुनौतियां
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद अब सभी की निगाहें बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) चुनाव पर टिक गई हैं। भारत की सबसे अमीर नगर निकायों में से एक, बीएमसी पर दशकों से शिवसेना का कब्जा रहा है। लेकिन शिवसेना के विभाजन के बाद, यह चुनाव उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन गया है।
बीएमसी का महत्व और वर्तमान स्थिति
बीएमसी का पांच साल का कार्यकाल 2022 में समाप्त हो चुका है, लेकिन अब तक चुनाव नहीं हो पाए। वर्तमान में नगर आयुक्त, राज्य सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासक के रूप में कार्य कर रहे हैं। संभावना है कि महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन के तुरंत बाद बीएमसी चुनाव आयोजित किए जाएंगे।
BJP और शिंदे की रणनीति
माना जा रहा है कि बीजेपी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को बीएमसी चुनाव में मजबूत करने की योजना बना रही है। अगर शिंदे मुख्यमंत्री नहीं बनते, तो शिवसेना कार्यकर्ताओं की भावनाएं उनके प्रति और मजबूत हो सकती हैं, जिसका लाभ बीएमसी चुनाव में मिल सकता है।
उद्धव के लिए बड़ा झटका बन सकता है चुनाव
अगर बीजेपी और शिंदे की शिवसेना बीएमसी चुनाव में जीत हासिल करती है, तो यह उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के लिए बड़ा झटका साबित होगा। इससे न केवल उनकी पार्टी कमजोर होगी, बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
बीएमसी का चुनावी भूगोल और इतिहास
मुंबई को सात जोन और 24 प्रशासनिक वार्डों में विभाजित किया गया है, जो 227 नागरिक चुनावी वार्डों में बंटे हैं। 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना ने 84 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा किया। कांग्रेस और अन्य दल पीछे रह गए थे।
मुंबई में महायुति का दबदबा
पिछले 25 वर्षों से मुंबई में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सत्ता में रहा है। हाल ही के विधानसभा चुनाव में महायुति ने मुंबई की 36 में से 22 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी ने 15, शिंदे गुट ने छह, जबकि कांग्रेस और उद्धव की शिवसेना को अपेक्षाकृत कम सफलता मिली।
चुनाव क्यों हैं अहम?
बीएमसी चुनाव न केवल मुंबई के विकास के लिए अहम हैं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में शक्ति संतुलन भी तय करेंगे। इस बार शिवसेना के दो गुटों और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय संघर्ष तय है, जिससे यह चुनाव पहले से कहीं अधिक रोमांचक हो गया है। बीएमसी चुनाव सिर्फ एक स्थानीय निकाय चुनाव नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीतिक दिशा और शिवसेना के दोनों गुटों के भविष्य का निर्धारण करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा, शिंदे और उद्धव की रणनीतियां इस जंग में किसे जीत दिलाती हैं।