इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रकार का वित्तीय साधन है जो राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए उपयोग किया जाता है। यह भारत सरकार द्वारा 2017 में शुरू किया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड ₹1,000, ₹10,000, ₹1,00,000 और ₹1,00,00,000 के मूल्यवर्ग में उपलब्ध होते हैं। इन बॉन्डों को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शाखाओं से खरीदा जा सकता है।
बॉन्ड खरीदने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है। बॉन्ड खरीदने के बाद, उन्हें 15 दिनों के अंदर किसी पंजीकृत राजनीतिक दल को दान कर दिया जाना चाहिए। राजनीतिक दल इन बॉन्डों को एसबीआई में जमा कर सकते हैं और उन्हें नकद में बदल सकते हैं। देश में जितने भी पंजीकृत राजनीतिक दल हैं, उन्हें यह बॉन्ड मिलता है,
लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम एक फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले हों। ऐसी ही पंजीकृत पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा पाने का हकदार होगी। सरकार के मुताबिक, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा। इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा।’ केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर काफी बहस हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि वे राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक पारदर्शी और जवाबदेह तरीका प्रदान करते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि वे राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक नया तरीका है। उनके फायदे और नुकसान दोनों हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस मुद्दे पर बहस करें और यह तय करें कि क्या इलेक्टोरल बॉन्ड भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छे हैं या नहीं।