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Mystery of Bhagavad Gita: Truth of Formless and Formless Brahman

भगवद्गीता का रहस्य: साकार और निराकार ब्रह्म का सत्य

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क्या आप जानते हैं भगवान कृष्ण ने गीता में अपने साकार और निराकार स्वरूप का रहस्य बताया है?

इस लेख में हम गहराई से देखेंगे कि भगवद्गीता किस प्रकार ईश्वर के साकार और निराकार स्वरूप का रहस्य उजागर करती है.

अल्पज्ञानी जन्म-मरण के चक्र में फंसे रहते हैं

भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 23 स्पष्ट करता है कि जो लोग सिर्फ भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए देवताओं की उपासना करते हैं, उन्हें अल्पकालिक फल ही मिलते हैं. ये सुख नश्वर होते हैं और इन्हें भोगने के बाद खत्म हो जाते हैं वहीं, जो भक्त पूरी श्रद्धा से श्री कृष्ण की भक्ति करते हैं, वे न केवल सांसारिक सुख प्राप्त करते हैं बल्कि मोक्ष का द्वार भी खोलते हैं. उन्हें श्री कृष्ण के दिव्यधाम में स्थान मिलता है, जहां जन्म-मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है.

निराकार ब्रह्मांड का सृजनकर्ता और साकार लीला का धारक

अध्याय 7, श्लोक 24 में श्री कृष्ण यह रहस्य बताते हैं कि अल्पज्ञ लोग यह भ्रम पालते हैं कि ईश्वर पहले निराकार था और फिर साकार हुआ. वे यह नहीं समझ पाते कि ईश्वर अव्यक्त (निराकार) और व्यक्त (साकार) दोनों रूपों में विद्यमान हैं.

ईश्वर का निराकार स्वरूप सर्वशक्तिमान है, उसी से इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है. वहीं उनका साकार स्वरूप उनकी लीलाओं (कृष्ण, राम आदि अवतार) को दर्शाता है. ईश्वर का निराकार रूप सनातन और अविनाशी है. वहीं उनका साकार रूप लीला के लिए धारण किया जाता है, जो अस्थायी होता है. उदाहरण के लिए, भगवान राम का साकार रूप हजारों वर्षों तक रहा, लेकिन अंततः वे सरयू नदी में विलीन हो गए.

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