भारतीय संस्कृति में विशेष रूप से भाई-बहन के प्यार को साकार करने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है “भाई दूज”। इस पर्व का आयोजन हर साल दीपावली के चौथे दिन किया जाता है, जब बहनें अपने भाईयों के साथ खास रूप से एक सानंदीकृत तिलक लगाती हैं और उनकी लंगोटी में कुछ मिठाईयां देती हैं।
भाई दूज का इतिहास:
भाई दूज का पर्व हिन्दू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके अनुसार, दीपावली के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा के घर जा कर उनकी पूजा की थी। उनकी पूजा के बाद, सुभद्रा ने अपने भाई कृष्ण को विशेष रूप से बधाई दी और उन्हें तिलक लगाया। इसके बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन के लिए विशेष प्रेम व्यक्त किया और उन्हें आशीर्वाद दिया। इस घटना के बाद से ही भाई दूज का पर्व मनाया जाने लगा है।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अलावा, सुभद्रा और कृष्ण की बातों की यात्रा के रूप में भी मिलता है। इसे भारतीय समाज में भाई-बहन के प्यार और समर्थन को संकेत माना जाता है।
भाई दूज का आयोजन:
भाई दूज का आयोजन दीपावली के कुछ दिन बाद होता है, जब बहनें अपने भाइयों को अपने घर बुलाती हैं। इस दिन बहन अपने भाई की पूजा करती हैं, उनकी तिलक लगाती हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार की मिठाईयां और तोहफे देती हैं। भाई भी बहन को विभिन्न उपहार देते हैं और एक दूसरे के साथ विशेष प्यार और ममता का अहसास करते हैं।
भाई दूज एक ऐसा पर्व है जो भारतीय समाज में परिवार के बंधनों को मजबूत करने में मदद करता है। इस दिन भाई-बहन के प्यार और समर्थन को साकार करने के लिए हर कोने से लोग मिलते हैं और एक दूसरे के साथ अपनी खुशियों और दुःखों को साझा करते हैं। यह पर्व भारतीय संस्कृति में परिवार के महत्वपूर्ण सदस्यों के बीच प्यार और समर्थन की भावना को बढ़ावा देता है और सभी को एक सजीव और सुखद जीवन की कामना करता है।