बरसात का दिन था। चारों ओर पानी बरस रहा था। जंगल में बुढ़िया का घर भीग रहा था। जल्दी ही बुढ़िया का घर टपकने लगा । बुढ़िया परेशान हो उठी। परन्तु करती भी क्या ? छप्पर को छाए कौन ?
थोड़ी देर में ओले भी पड़ने लगे । बेर बराबर ओले ! उधर एक बाघ ओलों की मार से परेशान हो उठा । कूदते-फांदते वह बुढ़िया के घर के पास पहुँचा । बुढ़िया अन्दर चावल पका रही थी । चूल्हे पर पानी टपक रहा था, टप-टप। वह झुंझला उठी और बोली – “मुझे टपका से इतना डर लगता है जितना बाघ से भी नहीं।”
बाघ ने सोचा बुढ़िया मुझसे तो नहीं डरती मगर टपका से डरती है। जरूर टपका मुझसे भी बड़ा जानवर होगा। बस इतना सोचते ही बाघ घबराया और सिर पर पैर रखकर भाग गया ।
शिक्षा – मुसीबत के समय हमेशा चतुराई से काम करना चाहिए।