विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय को पेड़ पौधों से बहुत लगाव था। इसी प्रेम से जुड़ा एक अनोखा किस्सा भी है। यह किस्सा कुछ इस प्रकार है कि एक बार राजा कृष्णदेव राय को कश्मीर के राजा ने कोई कार्यक्रम के लिए कश्मीर आने के लिए न्यौता भेजा। राजा कृष्णदेव राय ने खुशी खुशी यह न्यौता स्वीकार कर लिया।
जब वह कश्मीर गए तो वह वहां की सुंदरता को देखकर मुग्ध हो गए। वह सोचने लगे कि यहां पर चारों ओर कितनी सुंदरता है। राजा कृष्णदेव राय ने कश्मीर में ही एक ऐसा पौधा भी देखा जो कि देखने में बहुत सुंदर था। उस फूल में छोटे छोटे सुनहरे रंग के फूल उगे हुए थे। राजा का मन उन फूलों को देखकर बहुत खुश हुआ।
कृष्णदेव राय ने कश्मीर के राजा से यह मांग की कि उन्हें वैसा ही सुनहरे रंग का पौधा उपहार के तौर पर भेंट किया जाए। कश्मीर के राजा ने ऐसा ही किया। फिर राजा कृष्णदेव राय उस पौधे को लेकर विजयनगर की ओर चल पड़े। वहां पर जब वह पहुंचे तो लोग उस पौधे को देखकर हैरान रह गए। वह लोग भी इसी सोच में पड़ गए कि आखिर इतना सुंदर पौधा राजा लाए कहां से है। राजा ने सभी लोगों को बताया कि यह सुंदर पौधा कश्मीर से लाया गया है।
महल में आकर राजा ने एक दास को बुलाया और उससे कहा कि, “देखो, मैं तुम्हें इस खास पौधे की देखभाल करने का मौका दे रहा हूं। तुम इस पौधे का अच्छे से ध्यान रखना। मैं चाहता हूं कि तुम यह पौधा मेरे कमरे की खिड़की के ठीक बाहर लगाओ। ऐसा होने पर मैं इस पौधे को हर दिन निहार सकूँगा। और ध्यान रहे कि यह पौधा हमेशा हरा भरा रहना चाहिए। अगर यह पौधा खराब हुआ तो मैं तुम्हें मृत्युदंड दे दूँगा।” दास बोला, “जो हुक्म महाराज। मैं पौधे का पूरे मन से ख्याल रखूंगा।”
दास ने वही किया जो राजा ने कहा था। वह दिन रात पौधों का अच्छे से ध्यान रखता। वह हर दिन पौधे को पानी देता। उसके इस प्रकार से ध्यान रखने पर पौधे को बहुत फायदा मिला। पहले उस पौधे में केवल तीन या चार फूल ही थे। लेकिन उस दास की मेहनत के चलते उस गमले में खूब सारे सुनहरे फूल खिलाए। वह फूल बहुत ही प्यारे लग रहे थे। उन फूलों को देखकर महाराज का मन बहुत खुश होता। महाराज हर दिन उन फूलों को देखते ही रहते। कभी कभार तो ऐसा भी होता था कि राजा को कोई काम के चलते बाहर भी जाना पड़ता था। जब भी वह अपने राज्य से बाहर रहते तो उनका मन उन्हीं फूलों में ही पड़ा रहता। वह एक दिन भी फूलों को नहीं देखते तो वह तड़पने लगते थे।
एक दिन हर रोज की ही तरह राजा नींद से जागे। नींद से जागने के बाद वह सीधे ही अपनी खिड़की के पास गए। खिड़की पर जाकर देखा तो पाया कि राजा का वह प्रिय पौधा तो वहां था ही नहीं। राजा ने अपनी रानी से गमले के बारे में पूछा तो रानी ने कहा कि उसने कल शाम से ही वह गमला खिड़की पर नहीं देखा है।
राजा इस बात से व्याकुल हो उठा। उसने उसी समय अपने दास को बुलाया और पूछा, “मैंने तुम्हें गमले की जिम्मेदारी दी थी। तुम इतने गैरजिम्मेदार कैसे हो सकते हो? क्या तुम्हें यह पता नहीं कि मेरा वह खास गमला खिड़की से गायब है।” वह दास घबराते हुए बोला, “महाराज, दरअसल मैं जानता हूं कि उस गमले को क्या हुआ है।” राजा तेज आवाज में बोले, “तो फिर तुम यह बताते क्यों नहीं कि वह गमला आखिर कहां है।
“दास बोला, “महाराज वो…. वो…. दरअसल बात यह है कि वह पौधा मेरी बकरी खा गई। मैं जब तक उसको रोकता वह सारे फूलों को चट कर चुकी थी।” अपने शब्द पूरे करते ही वह दास रोने लगा। राजा बोले, “मूर्ख दास! मैंने तुम्हें पहले से ही यह आगाह किया था कि तुम उस गमले का ध्यान रखना। लेकिन तुमनें ऐसा नहीं किया। अब नियम तोड़ने की वजह से हम तुम्हें फांसी की सजा सुनाते हैं।”
जैसे ही उस नौकर की पत्नी को यह पता चला कि उसके पति को फांसी की सजा मिली है वह तो अत्यंत व्याकुल हो उठी। उसने सोचा कि यह कैसा राजा है जो छोटी सी बात पर किसी को भी फांसी की सजा सुना देता है। वह सीधे ही राजा के महल पहुंची और राजा से कहने लगी, “महाराज, कृपया करके मेरे पति को रिहा कर दीजिए। जो कुछ भी हुआ उसमें मेरे पति का कोई दोष नहीं था। मेरे पति तो उस पौधे की अच्छे से रखवाली कर रहे थे।
अब उन फूलों को बकरी खा गई तो उसमें मेरे पति का क्या कसूर।” राजा ने कहा, “देखो बहन मैं अपने शब्दों को पीछे नहीं खींच सकता। तुम्हारे पति को अब फांसी लगने से कोई नहीं बचा सकता।” दास की पत्नी यह बात सुनते ही बिखर पड़ी। वह टूटे हुए भारी मन के साथ अपने घर की ओर निकल पड़ी। लेकिन रास्ते में उसे एक इंसान मिला जिसने बताया कि अगर वह राजा के खास मंत्री तेनालीराम के पास जाए तो शायद उसके पति को फांसी से बचाया जा सकता है। वह सीधे ही तेनालीराम के पास पहुंची और उससे पति को बचाने की गुहार करने लगी। तेनालीराम ने उसे एक तरकीब बताई जिससे उसका पति बच सकता था।
अगली ही सुबह वह बीच सड़क पर अपनी बकरी को लाई और उसे अपने हाथों से जोर जोर से पीटने लगी। आने-जाने वाले सारे लोग उसकी इस हरकत से हैरान थे। मार खाते खाते थोड़ी देर बाद वह बकरी तेज तेज चिल्लाने लगी। उसी वक्त राजा के कुछ सिपाहियों ने उसे बकरी को मारते हुए देख लिया। सिपाही ने कहा, “अरे, तुम इस बकरी को मार क्यों रही हो? क्या तुम्हें पता नहीं है कि इस राज्य में निर्दोष प्राणियों को मारना पाप है।
अब तुम्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।” सिपाहियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसे राजा के पास ले गए। राजा ने कहा, “तुमनें एक निर्दोष प्राणी को मारकर बहुत बड़ा पाप किया है।” दास की पत्नी बोली, “अगर मैंने पाप किया है तो आपने भी तो उतना ही बड़ा पाप किया है। आपने मेरे पति को इसलिए सजा दी क्योंकि बकरी आपके पौधे को खा गई।
और मैंने बकरी को इसलिए सजा दी क्योंकि उसकी वजह से मेरे पति को फांसी की सजा हुई। तो बात तो बराबरी की हुई ना।” राजा का सिर अब शर्म के मारे झुक चुका था। उसने पूछा कि, “बहन, तुम्हारे दिमाग यह समाधान कैसे आया?” दास की पत्नी बोली, “दरअसल यह तरकीब मुझे आपके ही प्यारे मंत्री तेनालीराम ने बताई थी।” यह सुनते ही राजा ने दास की फांसी की सजा खत्म कर दी। राजा को तेनालीराम पर गर्व हो रहा था।