गृहिणियों की कुशलता समायोजन व संतुलन की धुरी पर टिकी होती है।किसी परिस्थिति में कब, कहाँ और कितना समायोजित होना है, यह बात एक कुशल गृहिणी अच्छे से जानती है। गृहस्थी की गाड़ी सरलता से चलती रहे इसके लिए नारी की सुघड़ता ( जीवन शैली जिसे अपनाकर सहज ही कार्य संपन्न हो जाये तथा व्यर्थ में किसी के मन में कोई आमना भी ना आए ) ही उपयोगी है।
श्रेष्ठ गृहिणी बनने के लिए आवश्यक है कि अपने सुनने की क्षमता को बढ़ा लिया जाए तथा उचित शब्दों के तालमेल से व्यवहार निभाया जाए। भारतीय नारियों की कार्य-कुशलता, संस्कार व शील की कोई उपमा नही दी जा सकती क्योंकि भारतीय नारियों को व्यवहार निभाने के ये सारे गुण विरासत में अपनी दादी-नानी से प्राप्त हो जाते है यदि कोई आदर्श ग्रहणी स्नेह , समर्पण, त्याग,ममता और परिवार को प्राथमिकता दे तो वह किसी भी शैक्षणिक डिग्री से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
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