एक घर मे तीन भाई और एक बहन थी ।बड़ा और छोटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके मां बाप उन चारो से बेहद प्यार करते थे मगर मझले बेटे से थोड़ा परेशान से थे। बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डॉक्टर बन गया। छोटा भी पढ लिखकर इंजीनियर बन गया। मगर मझला बिलकुल आवारा और गंवार बनके ही रह गया।
तीनों की की शादी हो गई । बहन और मझले को छोड़ दोनों भाईयो ने Love मैरिज की थी।बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी।आखिर भाई सब डॉक्टर इंजीनियर जो थे। अब मझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। बाप भी परेशान मां भी।
बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भैया से मिलती। मगर मझले से कम ही मिलती थी। क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था। वैसे वह दिहाड़ी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो नौकरी कौन देता। मझले की शादी किये बिना बाप गुजर गये ।
माँ ने सोचा कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए अपने ही पड़ोसी गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मझले की शादी करवा दी। शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मझला बड़े लगन से काम करने लगा । दोस्तों ने कहा ए चन्दू आज अड्डे पे आना।
चंदू – आज नहीं फिर कभी ।
दोस्त – अरे तू शादी के बाद तो जैसे बीबी का गुलाम ही हो गया?
चंदू – अरे ऐसी बात नहीं । कल मैं अकेला एक पेट था तो अपनी रोटी के हिस्से कमा लेता था। अब दो पेट है आज
कल और होगा।
घरवाले नालायक कहते थे,कहते है, मेरे लिए चलता है। मगर मेरी पत्नी मुझे कभी नालायक कहे तो मेरी मर्दानगी पर एक भद्दा गाली है। क्योंकि एक पत्नी के लिए उसका पति उसका घमंड इज्जत और उम्मीद होता है। उसके घरवालो ने भी तो मुझपर भरोसा करके ही तो अपनी बेटी दी होगी फिर उनका भरोसा कैसे तोड़ सकता हूँ । कॉलेज मे नौकरी की डिग्री मिलती है और ऐसे संस्कार माँ बाप से मिलते हैं ।
इधर घर पर बड़ा और छोटा भाई और उनकी पत्नीया मिलकर आपस मे फैसला करते हैं की जायदाद का बंटवारा हो जाये क्योंकि हम दोनों लाखों कमाते है मगर मझला ना के बराबर कमाता है। ऐसा नहीं होगा। मां के लाख मना करने पर भी बंटवारा की तारीख तय होती है। बहन भी आ जाती है मगर चंदू है की काम पे निकलने के बाहर आता है। उसके दोनों भाई उसको पकड़कर भीतर लाकर बोलते हैं कि आज तो रुक जा? बंटवारा कर ही लेते हैं । वकील कहता है ऐसा नहीं होता। साइन करना पड़ता है।
चंदू – तुम लोग बंटवारा करो मेरे हिस्से मे जो देना है दे देना। मैं शाम को आकर अपना बड़ा सा अंगूठा चिपका दूंगा पेपर पर।
बहन- अरे बेवकूफ तू गंवार का गंवार ही रहेगा। तेरी किस्मत अच्छी है कि तुम्हें इतने अच्छे भाई और बहन मिलें
मां- अरे चंदू आज रुक जा।
बंटवारे में कुल दस बीघा जमीन मे दोनों भाई 5- 5 रख लेते हैं । और चंदू को पुश्तैनी घर छोड़ देते है तभी चंदू जोर से चिल्लाता है। अरे फिर हमारी छुटकी का हिस्सा कौन सा है? दोनों भाई हंसकर बोलते हैं, अरे मूर्ख बंटवारा भाइयों मे होता है और बहनों के हिस्से मे सिर्फ उनका मायका ही है।
चंदू – ओह शायद पढ़ा लिखा न होना भी मूर्खता ही है। ठीक है आप दोनों ऐसा करो। मेरे हिस्से की वसीयत मेरी बहन छुटकी के नाम कर दो। दोनों भाई चकित होकर बोलते हैं ,और तू? चंदू मां की और देख के मुस्कुराके बोलता है
मेरे हिस्से में माँ है न ,फिर अपनी पत्नी की ओर देखकर बोलता है..मुस्कुराके ,क्यों चंदूनी जी क्या मैंने गलत कहा?
चंदूनी अपनी सास से लिपटकर कहती है। इससे बड़ी वसीयत क्या होगी मेरे लिए की मुझे मां जैसी सासु मिली और बाप जैसा ख्याल रखना वाला पति। बस यही शब्द थे जो बंटवारे को सन्नाटा मे बदल दिया । बहन दौड़कर अपने गंवार भैया से गले लगकर रोते हुए कहती है कि..माफ कर दो भैया मुझे क्योंकि मैं समझ न सकी आपको।
चंदू – इस घर मे तेरा भी उतना ही अधिकार है जितना हम सभी का। बहुओं को जलाने की हिम्मत किसी मे नहीं मगर फिर भी जलाई जाती है क्योंकि शादी के बाद हर भाई हर बाप उसे पराया समझने लगते हैं । मगर मेरे लिए तुम सब बहुत अजीज हो चाहे पास रहो या दुर।
माँ का चुनाव इसलिए किया ताकी तुम सब हमेशा मुझे याद आओ। क्योंकि ये वही कोख है जहाँ हमने साथ साथ 9 – 9 महीने गुजारे। मां के साथ तुम्हारी यादों को भी मैं रख रहा हूँ। दोनों भाई दौड़कर मझले से गले मिलकर रोते रोते कहते हैं
आज तो तू सचमुच का बाबा लग रहा है। सबकी पलकों में पानी आ गया।।
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