आज के युग मे चरित्र का निर्माण करना बहुत संकट का विषय बन चुका है। भारत वर्ष चरित्रों से ही पहचाना जाता है। हमारा खान पान, वेशभूषा, हाव-भाव ये सब हमारी पूंजी रही है। लेकिन युग परिवर्तित होते होते हम अपनी सभ्यता भी बदल रहे है।
पाश्चात्य संस्कृति को देखकर हम भी उसके रंग मे रंग मत हो चुके है। हमे खुश देखकर दुश्मन देश हमारा उपहास कर रहे है। लेकिन किसी को कोई परवाह नही। अगर अपने भारत वर्ष की गरिमा वा मान-सम्मान बचाना है तो हमे पाश्चात्य को छोड़कर अपनी वास्तविक सभ्यता को अपनाना पड़ेगा अन्यथा हमारा अहित होने से कोई नही रोक सकता।
एक छोटी सी कहानी आपके सामने प्रस्तुत है, अगर आपको अच्छी लगे तो अपने ऊपर ढालने की छोटी सी कोशिश जरूर की जियेगा।
एक बार एक चरित्रवान पुरुष की परीक्षा हेतु राजा ने एक सुंदर नारी को रात्रि के समय उसके सामने प्रस्तुत किया। जैसे ही वह नारी उस पुरुष के शयन कक्ष मे पहुंची उस पुरुष ने प्रेम भाव से उस नारी से पूछा। हे बहिन !! हे बेटी ! आप कृपा करके बाहर जाइये। अपने कुल का मान- मत मिटाइये। जिसके लिए तुम्हारे पूर्वजों ने बहुत मेहनत की है।
नारी का जीवन आसान नहीं है, अगर एक बार बदनामी का दाग लग गया तो वह आजीवन उसका पीछा नही छोडती। तुम आखिर मेरी बहन जैसी हो। कोई भी पिता अपनी बेटी की बदनामी सहन नही कर सकता। और आपके राजा का भी अहित होगा।
कोई भी राजा अपनी प्रजा को बदनाम होते नहीं देख सकता। या वह कुछ ऐसा करदे कि तुमे प्रजा से बाहर कर दे। वह पुरुष बार- बार उसे जाने के लिए कहते है। लेकिन वह वही रहती है । वह पुरुष बाहर चले जाता है। वह नारी भी बाहर आती वह पुरुष जब परेशान होता है तो नारी कहती है। हे श्रेष्ठ पुरूष मुझे राजा ने आपकी परीक्षा हेतु भेजा था। लेकिन आप एक चरित्रवान पुरुष हो। धन्य है आप।