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Matribhasha Unnayan Sansthan working for the global expansion of Hindi

हिन्दी के वैश्विक विस्तार के लिए काम कर रहा मातृभाषा उन्नयन संस्थान

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नई दिल्ली, (नेशनल थॉट्स )-   वे विरले ही होते हैं, जो हिन्दी को जीते हैं। इसका ऐसा ही एक उदाहरण हैं प्रदेश के युवा लेखक डॉ. अर्पण जैन और उनका मातृभाषा उन्नयन संस्थान, जिसने भारत के 24.74 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में बदलवाए हैं। विश्व की किसी भी भाषा के लिए इस तरह का आंदोलन आज तक खड़ा नहीं हो पाया है। ऐसे में संस्थान को 2020 में 11 लाख हस्ताक्षर बदलने पर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, लंदन और अब हाल ही में गिनीज बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में भी शामिल किया गया है।

 17 राज्यों में इकाइयाँ
इस संस्थान की 17 राज्यों में इकाइयां हैं, जिनमें देशभर के 18,300 हिन्दी योद्धा लगातार हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहे हैं। इसमें मध्य प्रदेश के लगभग 3500 हज़ार हिन्दी योद्वा हैं, जो सक्रिय हैं। अब संस्थान का 2025 तक एक करोड़ हस्ताक्षर बदलवाने का लक्ष्य है।

 एक वेबसाइट से की शुरुआत
युवा लेखक डॉ. अर्पण जैन ने हिन्दी भाषा के प्रचार और प्रसार के साथ-साथ विस्तार की ज़िम्मेदारी अपने कन्धे पर लेते हुए एक वेबसाइट से इसकी शुरुआत की, जिसमें हिन्दी के लेखकों के लेखन को प्रकाशित करके प्रचारित करने का कार्य शुरू किया, फिर धीरे-धीरे युवाओं का दल सक्रिय हो गया और फिर आम जनता के हस्ताक्षर अन्य भाषाओं से हिन्दी में बदलवाने की कवायद शुरू हुई। डॉ. अर्पण जैन ’अविचल’ ने मातृभाषा उन्नयन संस्थान की नींव रखी और इसका उद्देश्य भी हिन्दी भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा बनाना ही रखा।

कमाई का 70 प्रतिशत हिन्दी के लिए खर्च
डॉ. अर्पण मुख्यत: कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। वे हिन्दीग्राम, साहित्यकार कोश, खबर हलचल न्यूज़, साहित्य ग्राम पत्रिका सहित कई प्रकल्पों के माध्यम से हिन्दी के विस्तार के लिए काम कर रहे हैं। वे मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और हिन्दी ग्राम के संस्थापक भी हैं। डॉ. अर्पण जैन अब तक दस से अधिक किताबें लिख चुके हैं। ख़ास बात यह भी है कि डॉ. अर्पण अपनी कमाई का 70 प्रतिशत हिस्सा संस्थान और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए खर्च करते हैं । इसके साथ कुछ समाज सेवा से जुड़े लोगों के माध्यम से भी सहयोग मिलता है।

 इंदौर से हुई शुरुआत
इंदौर से ही मातृभाषा उन्नयन संस्थान की नींव रखी गई, जिसके बाद देश की राजधानी दिल्ली, कर्नाटक, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, कश्मीर सहित कई राज्यों में मातृभाषा उन्नयन संस्थान की इकाईयों की स्थापना की गई, जिनके माध्यम से हज़ारों हिन्दी योद्धाओं का सक्रिय दल बनाकर हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कार्य किया जा रहा है।

 एक हज़ार संस्थानों में होंगे इस वर्ष कार्यक्रमः
संस्थान ने  महाविद्यालयों और विद्यालयों में हिन्दी से जोड़ो अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान के तहत आगामी एक वर्ष में एक हज़ार संस्थानों में हिन्दी को लेकर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे।

 वैश्विक फ़लक पर भी मातृभाषा
हिन्दी आन्दोलन को विस्तार देते हुए अब मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा वैश्विक स्तर पर भी संस्थान की इकाईयों के माध्यम से हिन्दी भाषा का प्रचार किया जा रहा है। जिसके अन्तर्गत ऑस्ट्रेलिया से प्रगीत कुँअर एवं डॉ. भावना कुँअर, दुबई से नितीन उपाध्ये, अमेरिका से हिन्दी-यूएसए संस्था के राज मित्तल, जर्मनी से इंदु जी, मॉरीशस से सरिता बुद्धो, नेपाल से प्रभा सिंह और इंग्लैंड से रितिक मंगल सहित ओमान इत्यादि राष्ट्रों से भी हिन्दी योद्धा जुड़ रहे हैं।

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